बहुत कम उम्र में ही कविता ने सब्ज़ियाँ बेचने का काम शुरू किया ताकि अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधार सकें। लगातार 9 सालों तक, उन्होंने हर दिन मेहनत की और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने में जुटी रहीं।
उनकी लगन और मेहनत कभी कम नहीं हुई। चाहे वह ₹10-₹15 ही कमाती हों, लेकिन उन्होंने थोड़ा-थोड़ा पैसा बचाना शुरू किया, क्योंकि उनके मन में एक बड़ा सपना पल रहा था।
टूटा हुआ सपना, लेकिन अटूट हौसला
कविता का बचपन से सपना था कि वह पुलिस अधिकारी बनें। वह अपने गांव की महिलाओं की सुरक्षा करना चाहती थीं और उन्हें बेहतर जीवन देना चाहती थीं। उन्होंने दिन-रात पढ़ाई की, लेकिन पुलिस परीक्षा में मात्र एक अंक से असफल हो गईं।
उनका सपना टूट गया, लेकिन उनका हौसला कमजोर नहीं हुआ। उन्होंने हार मानने के बजाय, नई उम्मीदों के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।